पा न सके निवृत्ति कुछ, उलझे आठों याम।
अनसुलझा अब तक रहा, भावों का संग्राम।।१।।
दोष किसे दें रार का, प्रेम शिथिल जो आज।
खुद के भावों बिक गये, स्वयं बिगाड़े काज।।२।।
क्या होगा? किस कथन से? सोच कहो यदि बात।
रिश्ते मधुर बनें रहें, घटे न कुछ व्याघात।।३।।
रखो संतुलित भाव यदि, औ निश्छल व्यवहार।
'सत्यवीर' तब हृदय में, उमड़े मोद अपार।।४।।
☆ अशोक सिंह सत्यवीर