** यादों की खिड़की खुली **
मधुर वायु है बह रही, रोमांचित सब अंग।
यादों की खिड़की खुली, उहापोह के संग।।१।।
प्रिय की मोहक छवि बसी, आँखों में अविराम।
चपला चमके हृदय में, नित्य सुबह से शाम।।२।।
प्रेम भरे दो नैन वो, कहें कहानी रोज़।
मेरी सब रातें करें, बस प्रीतम की ख़ोज़।।३।।
'सत्यवीर' बेचैन हैं, मेरी आँखें आज।
प्रिय को देखूँ नैन भर, बैठूँ प्रेम-जहाज।।४।।
यादें छीनें चैन सब, पर प्रसन्न मन कह रहा ।
"सुखी रहें हों जहाँ भी, सागर उर में बह रहा ।।५।।
अशोक सिंह सत्यवीर
(काव्यकृति - यह भी जग का ही स्वर है )
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