Friday, August 5, 2016

लोकगीत (सोहर)

सोहर:

गरजहुँ ए देव, गरजहुँ, गरजि सुनावहुँ हो,
देव बरसहुँ जव के खेत, बरसि जुड़ावहुँ हो।।
जनमहुँ ए पूत, जनमहुँ, मोरे दुखिया घरे हो,
पूत, उजरल डिहवा बसावहुँ, बपइया जुड़ावहुँ हो।।
कइसे के जनमहुँ ए माई, कइसे के जनमहुँ  हो,
माई, टुटही खटियवा सुतइबू त रेइया गोहरइबू हो।।
जनमहुँ ए पूत, जनमहुँ मोरे दुखिया घरे हो,
पूत आल्हर चनन कटाइब, पलँगिया सुताइब, पितम्बर उड़ाइब
अहोइया गोहरइब हो।।
तेलवा त मिलिहें उधार, त नुनवा बेवहार मिले हो
माई, कोखिया के कवन उधार, जबहिं बिधि देइहें
तबहिं तुहूँ पइबू हो।।
आधी रात गइले पहर रात, होरिला जनम लेले हो
रामा बाजे लागल आनंद बढावा, उठन लगे सोहर हो।।

  गरजो हे देव! गरजो; गरज सुनाओ। बरसो देव जौ के खेत में, शीतल करो बरसकर।।
  जनमो हे पुत्र! जनमो, मुझ दुखिया के घर; उजड़ा डीह बसाओ,  शीतल करो पिता को।।
  कैसे जनमूँ माँ! कैसे जनमूँ, टूटी खाट पर सुलाओगी, 'रे' कहकर बुलाओगी ।।
  जनमो हे पुत्र! जनमो मुझ दुखिया के घर, कोमल चंदन कटाऊँगी, (उसी ) पलंग पर सुलाऊँगी, पीताम्बर उढ़ाऊँगी, 'अहो' कह पुकारूँगी।।
  तेल तो उधार मिलता है, व्यवहार से मिल जाता है नमक, (पर ) माँ! कोख कहाँ उधार मिलती है! जब विधाता देंगे तभी तुम भी पाओगी।।
  रात आधी गयी, पहर भर और गयी,  पुत्र ने जन्म  लिया, आनंद-बधावा बजने लगा, सोहर उठने लगे।।

अशोक सिंह 'सत्यवीर'

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