Thursday, September 8, 2016

प्रेम पयोधि विचित्र

मेरी दुनिया खिल उठी, मचले हृदय अपार।
पिय-छवि में ऐसा लगे, मुस्काये संसार।।१।।

रीति जगत की घुल गयी, प्रेम पयोधि विचित्र।
अनजानी मादक लहर,बनी अचानक मित्र।।२।।

जित देखूँ प्रियतम दिखें,यह कैसा आवेश।
भाव जगत के भेद से, पायी दृष्टि विशेष।।३।।

"सत्यवीर" सुमधुर दशा, नहीं उलाहन आज।
अनभिव्यक्त कुछ भाव हैं, बैठी प्रेम-जहाज ।।४।।

अशोक सिंह सत्यवीर

(पुस्तक - यह भी जग का ही स्वर है )

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